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अजगर वृति सन्यासी भिक्षु के लिये उत्तम है।

9 मार्च

सन्यासी को भिक्षु-वृति के बारे कबीर साहब समझा रहे हैं कि अजगर वृति सन्यासी भिक्षु के लिये उत्तम है। जिस प्रकार अजगर क्षुधा लगने पर मुँह से तेज हवा द्वारा किसी जानवर को निगल कर उसका आहार कर लेता है। अर्थात फ़िर उसे शिकार की कोई आवश्यकता नहीं रहती। लेकिन रस का लोभी भंवरा अलग-अलग सैकङों फ़ूलों पर घूमता है। यह मध्यम वृति है।

परन्तु निम्न निकृष्ट कोटि के सन्यासी भिक्षा से अन्न आदि का संग्रह कर गदहे (खर) की भांति (लालच भाव में) बोझा लिये घूमते हैं और कुछ कुत्ते (कूकर) की भांति टूंक-टूंक भोजन के लिये दर-दर फ़िरते हैं।

सार यह है कि सन्यासी को सिर्फ़ तुरन्त की आवश्यकता अनुसार आवश्यक वस्तु पाने का उद्यम करना चाहिये। कल-परसों के लिये संग्रह वृति न हो।